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मस्तिष्क-मृत्यु

मस्तिष्क-मृत्यु  या ब्रेन डेथ

मस्तिष्क-मृत्यु  या ब्रेन डेथ क्या है?

जब किसी व्यक्ति की ह्रदय गति रूक जाती हैं तो उस व्यक्ति को मृत घोषित कर दिया जाता है। लेकिन 1959 में दो फ्रैंच चिकित्सकों ने सबसे पहले ब्रेन डेथ के सिद्धान्त को परिभाषित किया। उन्होने पाया कि कई मरीज जो कि वेंटीलेंटर पर थे तथा उन्हें कोमा मान लिया गया था। लेकिन शरीर के अव्यव ठीक होने के बाद भी उनकी चेतना कभी नहीं लौटी और वेंटीलेटर हटाने पर उन मरीजो की साँस भी बंद हो गई। तब मस्तिष्क मृत की नई परिभाषा ने जन्म लिया। सन् 1968 में हॉवर्ड के डॉक्टरो के शोध के बाद पूरे विश्व में ब्रेन डैथ की इस परिभाषा को कानूनी तौर पर स्वीकार कर लिया गया। भारत में, मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम 1994 (Transplantation of Human Organ Act 1994) के अनुसार मस्तिष्क मृत्यु कानूनी तौर पर एक स्वीकृत मौत हैं।

ब्रेन डैथ की इस नई परिभाषा के अनुसार इस अवस्था को अपरिवर्तनीय कोमा मान लिया गया हैं। जिसमें मरीज के सभी चेतना भाग मृत हो जाते हैं और वेंटीलेटर से हटाने पर मरीज में किसी भी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया नही होती हैं और कुछ ही देर में साँस जो वेंटीलेटर से चल रही थी, वह बंद हो जाती हैं।

ब्रेन स्टेम की संरचना व कार्य क्या होते हैं?

मस्तिष्क के नीचे का भाग जो स्पाइनल कॉर्ड से जुडा होता है उसे ब्रेन स्टेम कहते हैं। ब्रेन स्टेम सांस लेना, खाना पचाना, दिल का धडकना, रक्तचाप तथा संवेदना (चेतना) आदि इन सभी क्रियाओं के चलाने के लिए उत्तरदायी होता है। ब्रेन स्टेम ही तंत्रिका संचालन करता है। यह मस्तिष्क तथा शरीर के बीच में मध्यस्ता का कार्य करता है। ब्रेन स्टेम जो ब्रेन का आधार होता है, वही कार्य करना बंद कर देता है। इसका यह परिणाम होता है कि व्यक्ति स्वंय सांस लेना बंद कर देता है और फलस्वरूप उसका ह्रदय कार्य करना बंद कर देता है।

मस्तिष्क-मृत्यु के मुख्य कारण:

  1. मस्तिष्क को आघात (यानी मोटर वाहन दुर्घटना के कारण सिर में गंभीर चोट या झटका)
  2. मस्तिष्क की धमनीयों में विस्फोट, चोट या सदमा (सेरेब्रोवास्कुलर चोट यानी स्ट्रोक या एन्यूरिज्म)
  3. मस्तिष्क में रक्त प्रवाह या ऑक्सीजन की कमी से एनोक्सिया होने पर (पानी में डूबने से या दिल का दौरा पड़ने के कारण भी हो सकता है)
  4. ब्रेन ट्यूमर

मस्तिष्क मृत्यु एक अपरिवर्तनीय स्थिति हैं जो कि मस्तिष्क में गंभीर चोट आने के कारण होती है। मस्तिष्क के सभी क्षेत्र क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और कार्य करना बंद कर देते हैं। वेंटिलेटर ऑक्सीजन प्रदान कर के दिल को धड़काता हैं जिस से शरीर में रक्त संचार होता हैं और अंगो को जीवित रखा जाता हैं। यह एक अनोखी स्थिति हैं जिसमें व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी हैं लेकिन वेंटिलेटर के कारण अंग अभी भी जीवित हैं।

  • Tumour:  गांठ (ट्यूमर)
  • Trauma : चोट
  • Intracerebal Haemorrhage : आंतरिक रक्तस्राव
  • Ischsemia : ख़ून जमना

मस्तिष्क- मृत्यु और कोमा में क्या अंतर हैं?

कोमा यह एक गहन अचेतना की अवस्था हैं। जिस में मस्तिष्क निरंतर कार्य करता रहता हैं और व्यक्ति बिना वैंटिलेटर के स्वयं साँस ले सकता हैं। ये मरीज कुछ समय के बाद चेतन अवस्था में आ जाते हैं।

मस्तिष्क मृत्यु की अवस्था में मस्तिष्क को गंभीर चोट लगने के कारण वह क्षतिग्रस्त हो जाता हैं और मस्तिष्क काम करना बंद कर देता हैं, जबकि शरीर के सभी अव्यव ठीक रहते हैं। मस्तिष्क मृत्यु की स्थिति में व्यक्ति बिना वैंटिलेटर के साँस नहीं ले सकता हैं और वैंटिलेटर हटाने से इन मरीजों की मृत्यु हो जाती हैं।

नोट:

कोमा वाले मरीजों का अंगदान संभव नहीं हैं जबकि मस्तिष्क मृत्यु की अवस्था वाले मरीजों का अंगदान संभव हैं।

वे कौन से परीक्षण और चिकित्सक हैं जो ब्रेन डैथ घोषित करने के लिए जिम्मेदार होते हैं?

अस्पताल के आपातकालीन कक्ष में जो चिकित्सक कार्य कर रहे होते हैं वे ही दिमाग में लगी चोट वाले मरीज को शुरूआती इलाज उपलब्ध करवाते हैं। बाद में मरीज को गहन चिकित्सा इकाई (ICU) में उसे भेजा जाता हैं जहाँ न्यूरोलाजिस्ट, न्यूरोसर्जन तथा इंटेसिविस्ट मरीज को इलाज करते हैं। इन मरीजों को वेंटीलेंटर यानी कृत्रिम साँस प्रणाली पर रखा जाता हैं।

भारत में, ब्रेन डैथ को प्रमाणित करने के लिए, दो चिकित्सक अस्पताल से तथा दो सरकारी चिकित्सक, ये चारों मिल कर जांच के द्वारा प्रमाणिक रूप से ब्रेन डैथ घोषणा पर कार्य करते हैं। इनमें से एक चिकित्सक का न्यूरोलॉजिस्ट या न्यूरोसर्जन या इंटेसिविस्ट का होना जरूरी है। ब्रेन डैथ परीक्षणों की एक सूची होती है  जिसका उपयोग चिकित्सक द्वारा ब्रेन डैथ घोषित करने के लिए किया जाता है। मरीज ब्रेन डैथ हैं या नही यह सुनिश्चित करने के लिए क्रेनियल नर्व तथा एपनिया टेस्ट किये जाते हैं। मौत की पुष्टि के लिए यह परीक्षण छह घंटे के अंतराल के साथ दो बार किए जाते हैं। ब्रेन डैथ परीक्षण के नियम बहुत ही कड़े हैं और उन्हें पूरे विश्व के चिकित्सको से कानूनी और नैतिक समाज की स्वीकृति मिली हुई हैं।

परिवारजन को ब्रेन डैथ के बारे में कौन बताता है?

चिकित्सक (इंटेसिविस्ट, न्यूरोलॉजिस्ट, न्यूरोसर्जन) जो मरीज का इलाज कर रहा होता है वही परिवार को ब्रेन डैथ के बारे में बताता है।

मस्तिष्कमृ  मरीज कब अंगदान कर सकते है?

मरीज ब्रेन डैथ हैं, यह सुनिश्चित होने के बाद ही चिकित्सक जो मरीज का इलाज कर रहा होता है, वही परिवार को ब्रेन डैथ के बारे में बताता है। जब परिवार वाले ब्रेन डेड मरीज को सोता हुआ देखते है, वह छूने पर गर्म भी लगता है और सांस भी लेता हुआ दिखाई देता है, इस स्थिति  में परिवार जन को ब्रेन स्टेम डेथ की अवधारणा को समझाना बहुत ही  मुश्किल हो जाता है । जब एक बार परिवार यह स्वीकार कर लेता हैं कि वह जो देख रहे हैं वह सब वेंटिलेटर के कारण हो रहा हैं और उनका प्रिय व्यक्ति मर चुका है। तब उन्हें अन्य रोगियों की सहायता के लिए अंग और ऊतक दान के विकल्प समझाया जाता है।

क्या ब्रेन डैथ को प्रमाणित करने का तरीका वही होता है जैसा कि अंगदान किये जाने की स्थिति में?

अंगदान किया जाना हो अथवा नही ब्रेन डैथ को प्रमाणित करने का तरीका एक जैसा ही होता है।  अंगदान किया जाना हो अथवा नही ब्रेन डैथ को प्रमाणित करने का तरीका एक जैसा ही होता है। मृत्यु का समय दूसरे एपनिया टेस्ट को ही माना जाता है।

अंग और ऊतक दान के मेरे निर्णय से क्या मेरी चिकित्सा या देखभाल में किसी प्रकार की कमी होगी?

नहीं! जब जीवन बचाने के सभी प्रयास विफल हो जाते हैं और डॉक्टर ब्रेन डैड धोषित कर देते हैं, उस के बाद ही अंगदान के बारे में विचार किया जाता हैं। जो डॉक्टर मरीज का इलाज करते हैं और जिन डॉक्टरों के दल अंग निकालते हैं और जो ट्राँसप्लांट करते हैं वे सब अलग-अलग दल के और विभिन्न अस्पतालों के होते हैं।

क्यों ब्रेन-डैड के मरीजो का ही अंग प्रत्यारोपण होता हैं?

पिंड या सालिड अंगो (ह्रदय, फेफड़े, लीवर, अग्नाष्य, किडनी) को प्रत्यारोपण होने तक ऑक्सिजन और रक्त संचार की आवश्यकता पडती है जो कि संभवतयः केवल मरीज के ब्रेन डैथ होने की स्थिति में और वेनटीलेटर पर रहने पर ही संभव हो सकता है। ह्रदय गति के रूक जाने से मृत हुए मरीजो की धड़कन रूक जाने के तुरंत बाद ही उनके अंग, ऑक्सिजन और रक्त संचार बंद होने के कारण नष्ट होने लगते हैं। इसी लिये केवल ब्रेन डैड मरीजो के अंगो का ही प्रत्यारोपण होता हैं।

परिवार की सहमति मिल जाने पर भी क्या अंगदान नही हो पाता है?

ब्रेन डैथ में कई बार परिवार जन से सहमति मिल जाने के बाद भी अंगदान संभव नही हो पाता है। इसके अनेक कारण हैं, जैसे कि दुर्घटना में अव्यवों का क्षतिग्रस्त होना, अंगो का ठीक न होना, किसी तरह का संक्रमण रोग होना और कई अन्य तकनीकी वजह भी हो सकती हैं। इसका निर्णय मरीज की पूरी रिपोर्ट देख कर ही मेडिकल चिकित्सको द्वारा किया जाता हैं।

क्या अंगदान करने से शरीर विकृत हो जायेगा?

कदापि नहीं। प्रशिक्षित शल्य-चिकित्सक इतनी सावधानी और सचेतता से शरीर के अंगों को निकालते हैं कि ऊपरी तौर से शरीर बिल्कुल सामान्य दिखाई देता हैं।

अंगदान के प्रति क्या कोई धार्मिक विरोध हैं?

अंगदान एवं प्रत्यारोपण पर किसी भी धर्म को आपति नहीं हैं। वास्तव में धर्म तो दान करने का समर्थन करते हैं और फिर जीवन दान से बढ़ कर भला क्या कोई दान हो सकता है । यदि आपको कोई संदेह हो तो आप अपने धर्मगुरू से सलाह ले सकते हैं।

क्या दानदाता या उनके परिवार को कोई शुल्क देना पड़ेगा?

अंगदाता या उसके परिवार को किसी भी तरह का खर्च वहन नहीं करना पड़ता हैं। एक बार जो परिवार अंगदान करने के लिये सहमत हो जाते हैं, तब परिवार की सहमति होने के बाद के सारे खर्चे अस्पताल, प्राप्तकर्ता अस्पताल या एन.जी.वो. द्वारा वहन किये जाते हैं। लेकिन उस के पहले के सारे खर्चे परिवार द्वारा वहन किये जाते हैं।

क्या अंग प्राप्तकर्ता की जानकारी सार्वजनिक या मेरे परिवार को दी जायेगी?

दान कर्ता और प्राप्तकर्ता दोनों की पहचान गोपनीय रखी जाती हैं। प्रत्यारोपण के बाद दोनों के परिवार को केवल बुनियादी जानकारी दी जाती हैं। वह इसलिये कि जिस से दाता परिवार भविष्य में किसी भी तरह से प्राप्तकर्ता परिवार से भावनात्मक या आर्थिक रूप से ना जुड़ सके और निःस्वार्थ दान की गरिमा कायम रह सके। जिन मरीजों को अंग की बहुत जरूरत होगी, उन्ही को आपके दिये अंग प्रत्यारोपित किये जायेगें। अंगो का मिलान प्राप्तकर्ताओं की प्रतिक्षा सूची और भौगोलिक स्थिति पर उसकी उपयुक्ता, प्रत्यारोपण की तात्कालिता और अवधि के आधार पर किया जाता हैं।

क्या अंग खरीदे या बेचे जा सकते हैं?

नहीं, मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 के अनुसार यह एक दंड़नीय अपराध हैं। सन् 2011 के संशोधित कानून के अनुसार बेचने, खरीदनें, बिचौलियों, डॉक्टरो और नकली दस्तावेज बनाने वालों को 5 से 10 साल का कारावास के साथ में 20 लाख से 1 करोड़ तक जुर्माना भरना होगा।