अंग-दान
अंगदान की प्रकिया
जब किसी व्यक्ति की ह्रदय गति रूक जाती हैं तो उस व्यक्ति को मृत घोषित कर दिया जाता है। लेकिन सन् 1968 में हॉवर्ड के डॉक्टरो के शोध के बाद पूरे विश्व में ब्रेन डैथ की इस परिभाषा को कानूनी तौर पर स्वीकार कर लिया गया। भारत में, मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम 1994 (Transplantation of Human Organ Act 1994) के अनुसार मस्तिष्क मृत्यु कानूनी तौर पर एक स्वीकृत मौत हैं।
आप कब और कौन से अंग दान कर सकते हैं? ब्रेन डैथ की इस नई परिभाषा के अनुसार इस अवस्था को अपरिवर्तनीय कोमा मान लिया गया हैं। जिसमें मरीज की सभी चेतना भाग मृत हो जाते हैं और वेंटीलेटर से हटाने पर मरीज में किसी भी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया नही होती हैं और कुछ ही देर में साँस जो वेंटीलेटर से चल रही थी, वह बंद हो जाती हैं। इस परिस्थिति में अंग दान किया जा सकता हैं। अंग दान 3 प्रकार से होता हैं--
- जीवित व्यक्ति
- घर पर मृत्यु
- अस्पताल में मृत्यु
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- मृतक की आँखो को बंद करके, उन पर गीली रूई का फोहा रख दें, जिस से नेत्र सूख ना पाये।
- पंखे को बंद कर दे यदि एयर कंडीशनर हैं तो उसे चालू कर दें।
- सिर को थोड़ा सा ऊपर उठाएँ।
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- नजदीकी नेत्र बैंक से संपर्क करे (राष्ट्रीय नेत्र- बैंक: फोन 26593060 26589461)।
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- प्राकृतिक मृत्यु
- मस्तिष्क-मृत्यु
प्राकृतिक मौत के बाद आप क्या दान कर सकते हैं?
प्राकृतिक-मृत्यु के बाद केवल निम्न ऊतक (टिश्यू) दान किये जा सकते हैं:-
- आंखें
- त्वचा और प्रावरणी (फैशीआ)
- हृदय के वाल्व
- हड्डियाँ और स्नायु/पेशी (टेंडन)
- उपास्थि (कड़ी लचीली हड्डी )
- नस और धमनियाँ
ब्रेन डेथ के बाद आप क्या दान कर सकते हैं?
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- आंखें (2)
- किडनी (2)
- जिगर (1)
- फेफड़े (2)
- अग्न्याशय (1)
- छोटी आंत (1)
- स्वरयंत्र (वॉयस बॉक्स ) (1)
- हाथ (2)
- उंगलियों और पैर की उंगलियों (20
- त्वचा और प्रावरणी (फैशीआ) – कई
- अस्थि – असंख्य
- कड़ी लचीली हड्डी (कार्टलिज) – कई
- टेंडन्स स्नायु/पेशी- कई
- नस – असंख्य
- धमनियां – कई
- नस – असंख्य
किस आयु तक अंग और ऊतक दान किये जा सकते हैं?
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- किडनी जन्म से 70 वर्ष
- हृदय जन्म से 60 वर्ष
- फेफड़े जन्म से 60 वर्ष
- लीवर जन्म से 70 वर्ष
- हृदय के वाल्व जन्म से 60 वर्ष
- आंखें जन्म से 100 वर्ष
- श्वासनली 15 से 60 वर्ष
- त्वचा 16 से 85 वर्ष
ज्यादातर लोग अधिक उम्र होने के बावजूद भी अपने अंग या ऊतक
या फिर दोनों ही दान कर सकते हैं।
प्रत्यारोपण तथ्य
किसी भी अंगों को एक निश्चित अवधि तक ही जीवित रखा जा सकता हैं। ये अंग बड़े नाजुक होते हैं और उनको सुरक्षित निकालने और ट्रॉसप्लांट करने के लिये बहुत ही निपुण डॉक्टर होते हैं। अंग निकालने के बाद एक निश्चित अवधि में उनका ट्रॉसप्लांट करना जरूरी होता हैं। इसीलिये अंग निकालने के पहले ही सारे टिश्यु मिलान कर के और अन्य तकनीकी कार्यवाही पूरी कर ली जाती हैं। निम्न तालिका से अंगो को सुरक्षित रखने की अवधि को देखा जा सकता हैं-
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- हृदय 4 से 6 घंटे
- हृदय-फेफड़े 4 से 6 घंटे
- फेफड़े 4 से 6 घंटे
- लीवर 12 से 24 घंटे
- किडनी 24 से 48 घंटे
चिकित्सकीय कानूनी मामला (मेडिको लीगल केस) –
जब किसी व्यक्ति की मृत्यु अप्राकृतिक कारणों से होती है: दुर्घटना, आघात, हत्या, आत्महत्या आदि – तो अस्पताल उसे एक एम.एल.सी. मामले के तहत रोगी को देखेगा और इसकी सूचना यदि पुलिस को नहीं दी गई हैं, तो घटना स्थल जिस थाने के तहत आता है वहाँ इसकी एक प्राथमिकी सूचना, अस्पताल को दर्ज करानी चाहिए। इसका मतलब है कि स्थानीय पुलिस पूछताछ करेगी और मौत के कारणों का पता लगाने की कोशिश करेगी। कोई भी अंग दान की गतिविधि पुलिस की अनुमति के बगैर नहीं हो सकती।
टी.एच.ओ.टी.आर के नियम-6, 2014 में, मेडिको लीगल मामलों के लिए दिये गये दिशानिर्देश के अनुसार अंगो या ऊतको के दान की प्रक्रिया:
अंगों या ऊतकों को निकालने की अनुमति देने वाली अधिकारिक समिति की आज्ञा मिलने के बाद, अंग-दाता परिवार से अंगों को दान करने की सहमति भी प्राप्त होने के बाद, अस्पताल के पंजीकृत चिकित्सक को स्टेशन हाउस ऑफिसर या पुलिस अधीक्षक या क्षेत्र के उप महानिरीक्षक या उस अस्पताल में स्थित पुलिस पोस्ट को एक अनुरोध पत्र भेजना होगा। जिस से शीघ्र ही पुलिस की अनुमति मिल सके और अंगदान की प्रक्रिया एक निश्चित अवधि में पूरी की जा सके। इस तरह के अंगदान में समय बहुत ही कम होता हैं य़दि देर हो जाये तो वेंटीलेटर पर होने के बावजूद भी मरीज का अंगदान नहीं हो सकता। इस तरह के अनुरोध की एक प्रति क्षेत्र के नामित पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर को भी भेजना होता हैं ताकी पोस्टमार्टम के समय डॉक्टर को यह पता रहें कि कौन से अंग निकालने की अस्पताल को अनुमति थी और उन्होने केवल वही अंग निकाले हैं। यह पारदर्शिता इस कार्यक्रम का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
एक प्रत्यारोपण सहायक (cordinator)का क्या कार्य होता है जब किसी मरीज को ब्रेन डैड घोषित किया जाता है?
प्रत्यारोपण सहायक (कॉर्ड़िनेटर) को परिवार जन के साथ रह कर समय-समय पर उन्हें मरीज की सारी जानकारी देनी चाहिये। ये परिवार और डॉक्टरों के बीच एक पूल का काम करते हैं। अस्पताल में डॉक्टरों को मरीज का इलाज करने के कारण समय कम होता हैं, इस स्थिति में कॉर्ड़िनेटर मरीज के इलाज की सारी जानकारी सरल भाषा में परिवार वालों को देते रहते हैं। इनका मुख्य उद्देश्य परिवार को मानसिक और भावनात्मक सहारा देना होता है, जिस से वे इस दुःखद आधात सहन कर सके। यदि ब्रेन-डैड की स्थिति उत्पन्न होती हैं तो कॉर्ड़िनेटर सहज रूप से नेत्रदान व बाद में अंगदान के वि़षय में उनसे बात कर सकते हैं। यह एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी प्रत्यारोपण सहायक पर होती है। अगर परिवार वाले अंगदान के लिए सहमति दे देते हैं तो सहायक मृतक अंगदान प्रत्यारोपण समूह को इसकी सूचना उपलब्ध करवाता है, गहन चिकित्सा इकाई (ICU) के मेडिकल कर्मचारियों के साथ मरीज के अंग निकाले जाने की व्यवस्था करता है। सहायक की अन्य जिम्मेदारी यह भी होती है कि वो इस बात का विषेश ध्यान रखे कि मरीज से संबधित सारी कानूनी कागजी कार्यवाही को पूरा करके जल्द से जल्द मरीज के पार्थिव शरीर को परिवारजन को अंतेशष्टि के लिए सौंप दें। यदि परिवार अंगदान के लिए सहमति नहीं भी देते हैं तो भी सहायक की यह जिम्मेदारी होती है कि वो अंत तक परिवार को भावनात्मक सहारा दें और संबधित सारे कागजी कार्यवाही को पूरा कर के मरीज के पार्थिव शरीर को उन्हें सौंप दें। चिकित्सकीय कानूनी मामलों में कॉर्ड़िनेटर को ऊपरोक्त बताई हुई सारी बातें ध्यान में रखते हुये कार्यवाही शीघ्रता से करना होता हैं। यह एक कॉर्ड़िनेटर का अहम दायित्व हैं।