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सुश्री सुस्मिता, गुर्दा प्रत्यारोपण, 1 अप्रैल, 2021

 

10 फरवरी, 2021 को मोहन फाउंडेशन की अनुदान – प्रत्यारोपण को किफायती बनाना” टीम को ह्यूस्टन, यू.एस.ए से एक सुश्री शिरीशा गुंटका से एक ई-मेल प्राप्त हुई, जिसमें एक 27 वर्षीय युवा महिला, जे. सुस्मिता के किडनी प्रत्यारोपण के लिए मदद का अनुरोध किया गया था।

सुश्री शिरीशा के शब्दों में, “मुझे उसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी। किसी ने उसका केस भेज कर मुझ से दान का अनुरोध किया, क्योंकि मैं भी तेलंगाना की रहने वाले थी।  सुस्मिता की हालत से द्रवित होकर और उनकी आर्थिक स्थिति का अध्ययन करने के बाद, मैंने एक निर्णय लिया और अनुदान एकत्र करने लिये एक ऑनलाइन खाते ‘गो फंड मी’ की स्थापना की। मैनें उन्हें सर्जरी के लिए आगे बढ़ने के लिए कहा और उनसे वादा किया कि अगर मैं सर्जरी के लिए आवश्यक धन जुटाने में असमर्थ रही, तो भी मैं व्यक्तिगत रूप से भुगतान करूँगी।”

 इन करुणामयी परोपकारी महिला ने ऑनलाइन अभियान ‘गोफंडमी’ से, सर्जरी लागत का 40% धन जमा किया, लेकिन उसके बाद वे धन जुटाने में असमर्थ रही। तब उन्होने मोहन फाउंडेशन से ई-मेल भेज कर आग्रह किया। सुश्री शिरीशा के अनुरोध करने के बाद, अनुदान-टीम ने भेजी गई आवश्यक जानकारी और दस्तावेजों का बारीकी से अध्ययन किया और सुस्मिता के प्रत्यारोपण में मदद करने का निर्णय लिया।

मोहन फाउंडेशन ने 2 लाख का योगदान दिया और अस्पताल के साथ मिलकर प्रत्यारोपण लागत को और अधिक कम करने के लिये प्रयत्न्न किये और 1अप्रैल, 2021 को सुस्मिता का सफलतापूर्वक किडनी ट्रांसप्लांट किया गया।

जे. सुस्मिता तेलंगाना के आगापेट नामक एक छोटे से गाँव की रहने वाली हैं। वह एक गृहिणी और 5 साल के बेटे की माँ है । सुस्मिता साहित्य (तेलुगु) में कला स्नातक हैं और एक शिक्षिका बनने की इच्छा रखती है लेकिन वर्तमान में स्वास्थ्य समस्याओं के कारण उनके सपने अभी अधूरे हैं।

उन्हे किडनी की बीमारी , गर्भधारण में, गर्भावस्था प्रेरित उच्च रक्तचाप (पीआईएच) के कारण शुरू हुई। हालाँकि उसने गर्भावस्था के 7 महीने में उन्होंने अपना बच्चा खो दिया, लेकिन वह खुद बच गई असफल गुर्दे के साथ। सुस्मिता के पति एक हवाई अड्डे पर कर्मचारी थे। जब उन्हें पता चला कि उनकी पत्नी क्रॉनिक किडनी रोग से पीड़ित हैं और उन्हें इसकी आवश्यकता है, तो उन्हें अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी। सप्ताह में तीन बार डायलिसिस के लिए वारंगल जाना पड़ता था।  परिवार स्पष्ट रूप से आर्थिक संघर्ष से गुजर रहा था। जब डॉक्टर ने तत्काल किडनी की सलाह दी तो उनकी मां खुशी-खुशी अपनी बेटी को किडनी दान करने के लिए आगे आईं। लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति ख़राब होने के कारण ट्रांसप्लांट का पूरा खर्च उठाना परिवार के लिये संभंव नहीं था। दोस्तों और रिश्तेदारों में बात फैल गई। किसी ने इंटरनेट पर मदद की मांग करी और यह अनुरोध सुश्री शिरीशा गुंटका के पास पहुँच गया।

वह और उसकी मां दोनों ठीक हो गए हैं और धीरे-धीरे सामान्य स्थिति में लौट रहे हैं।

“मैं मोहन फाउंडेशन को तहे दिल से धन्यवाद देना चाहती हूं मुझे दूसरा जीवन देने के लिए।” – सुस्मिता कहती हैं।

सुस्मिता के पति सोमानी जातोथु कहते हैं, ”मैं अब बहुत खुश हूं। मोहन फाउंडेशन की सहायता से, प्रत्यारोपण बिना किसी डर के बहुत आसानी से हो गया। मोहन फाउंडेशन वास्तव में हमारे लिए भगवान का उपहार है। मैं अब आश्वस्त हूँ और पूर्णकालिक नौकरी पर लौटना चाहता हूँ।

ट्रांसप्लांट के बाद शिरिषा ने फाउंडेशन को पत्र लिखकर कहा, “मैं आपकी सहायता के लिए बहुत धन्यवाद देना चाहती हूँ जो  शब्दों से परे है। आपने दान देकर भी मदद की, साथ में अस्पताल प्रबंधन से सर्जरी की लागत कम करने का अनुरोध किया और लागत संशोधित कर 8.8 लाख कर दी। आपके ट्रांसप्लांट समन्वयक ने परिवार को अकेला नहीं छोड़ा बल्कि उन्हें भरसक सहायता दी। मोहन फाउंडेशन की उपस्थिति और सहयोग ने बड़ा योगदान दिया है।”