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सुश्री कामिनीबेन परमार, लीवर प्रत्यारोपण, 22 जून, 2021 

 

7 जून, 2021, मोहन फाउंडेशन की “अनुदान- ट्रांसप्लांट को किफायती बनाना” टीम को एस्टर सीएमआई अस्पताल, बेंगलुरु से कामिनीबेन परमार के लीवर ट्रांसप्लांट के लिए वित्तीय सहायता का अनुरोध करने वाला एक ईमेल प्राप्त हुआ।

अनुदान टीम को श्रीमती शेरीना कॉन्ट्रैक्टर, अहमदाबाद, गुजरात से एक ईमेल भी प्राप्त हुआ उसमें कामिनीबेन के लिए मदद का अनुरोध किया जा रहा है क्योंकि वह लंबे समय से उनके साथ जुड़े हुए, उनके कर्मचारी की बेटी थी।  श्रीमती शेरीना जरूरत के समय में कामिनीबेन के परिवार का समर्थन कर रही थीं।

कामिनीबेन के पिता श्री शंकर भाई परमार ने श्रीमती शेरीना को इसके बारे में सूचित किया कि उनकी बेटी की स्वास्थ्य स्थिति खराब होती जा रही हैं और कई अस्पतालों में इलाज के बावजूद भी उसमें कोई सुधार नहीं हुआ। शंकर भाई  ने कहा, “यह क्या जीवन है. हमारी लड़की के लिए?’ उसे खून की उल्टी होती है और वह बेहद कमजोर है। वह जीवन के सबसे अच्छे साल  खो रही है और हम अपनी वित्तीय स्थिति की वजह से उसकी जान बचाने में असमर्थ हैं । उसकी आँखों में दर्द और डर का एहसास लगातार याद दिलाता है कि हम माता-पिता के रूप में कैसे असफल हो रहे हैं। कामिनीबेन का परिवार निराश और भ्रमित हो कर सारी आशा खो रहा था।

श्रीमती शेरीना के परिवार ने श्री शंकरभाई के परिवार की मदद करने का फैसला किया और शुरुआत में कामिनीबेन के बेहतर इलाज के लिए कई दूसरे बड़े अस्पतालों से संपर्क करने के बाद, उन्हें अहमदाबाद के ज़ाइडस अस्पताल ले जाया गया, जहां उनका इलाज हुआ और लीवर बायोप्सी की गई। तभी, परिवार को चौंकाने वाली खबर मिली कि अगर कामिनीबेन को जल्द से जल्द लिवर ट्रांसप्लांट नहीं किया तो उनकी मौत हो जाएगी।

कामिनीबेन परमार, उम्र 23 वर्ष दोहद, गुजरात की रहने वाली हैं। उसके पिता श्रीमती शेरीना कॉन्ट्रैक्टर के घर में ड्राइवर का काम करते हैं। वे 15,000 रू. प्रति माह कमाते है, जो कि परिवार की आय का एकमात्र स्रोत है। कामिनीबेन की दिल दहला देने वाली कहानी तब शुरू हुई जब वह 7वीं कक्षा में पढ़ रही थीं। एक दिन सुबह उठने के बाद उसे अचानक खून की उल्टियां होने लगीं और उसके पेट में तेज़ दर्द हो रहा था। फिर उसे तुरंत ले जाया गया वडोदरा में गैस्ट्रो केयर हॉस्पिटल, जहां उनका सीटी स्कैन और लीवर बायोप्सी की गई। परिवार को बताया गया कि कामिनीबेन खतरनाक लीवर रोग से पीड़ित हैं, जो एक दुर्लभ आनुवंशिक विकार है जो जिगर में अत्यधिक तांबे के संग्रहित होने से होता है। यह जानकारी सुनकर परिवार सदमे में आ गया। फिर  आगे के उपचार और परीक्षण के लिए ज़ाइडस अस्पताल, अहमदाबाद में उसे रेफर कर दिया गया।

मार्च, 2021 में, गिफ्ट ऑफ लाइफ एडवेंचर के मैनेजिंग ट्रस्टी श्री अनिल श्रीवत्स फाउंडेशन ने कामिनीबेन के परिवार से मुलाकात की और उन्हें जीवित दान के बारे में जागरूक किया। उन्होने उसे बेंगलुरु के, एस्टर सीएमआई अस्पताल के डॉ. सोनल अस्थाना से संपर्क करने की सलाह दी। डॉ. सोनल अस्थाना से परामर्श करने बाद पूरे परिवार को आशा बंध गई। नैदानिक परीक्षणों से यह पुष्टि हो गई कि माँ एक उपयुक्त जोड़ी थी।

हालाँकि श्रीमती शेरीना के परिवार ने गुजरात से बेंगलुरु यात्रा का, प्री ट्रांसप्लांट अस्पताल शुल्क और चिकित्सा खर्च उठाया लेकिन कामिनीबेन के लीवर प्रत्यारोपण करने के लिए, 15 लाख रु. देना, उनकी सीमा से बाहर था। तभी एस्टर सीएमआई अस्पताल और श्रीमती शेरीना ने मोहन फाउंडेशन से वित्तीय सहायता के लिए संपर्क किया।

अनुदान टीम ने आवश्यक जानकारी और अनिवार्य दस्तावेज़ देखने के बाद कामिनीबेन के जिगर प्रत्यारोपण मे मदद देने का निर्णय लिया। मोहन फाउंडेशन ने अस्पताल को कुछ छूट देने के लिए प्रेरित किया और 2 लाख का योगदान दिया और अन्य गैर सरकारी संगठनों के समर्थन से, कामिनीबेन का 22 जून, 2021 को सफलतापूर्वक लीवर ट्रांसप्लांट हुआ। मां और बेटी दोनों की सर्जरी सफल रही और दोनों स्वस्थ हो रहे हैं। मोहन फाउंडेशन उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करता है। युवा कामिनीबेन ने कला में स्नातक की डिग्री जारी रखने का निर्णय लिया है। भविष्य में वह वकील बनना चाहती है, वह अब अपने सपनों को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

“मैं मोहन फाउंडेशन को इस सहयोग के लिए तहे दिल से धन्यवाद देना चाहती हूँ। मुझे जीने और अपने सपनों को पूरा करने का दूसरा मौका मिला है” – कामिनीबेन परमार।

 “एक युवा लड़की, जिसे अपने सारे सपने, अपनी शिक्षा, करियर, शादी, भावी परिवार की आकांक्षाएं सिर्फ इसलिए छोड़नी पड़ी क्योंकि वह एक दुर्लभ लीवर की बीमारी से पीड़ित थी। हम जानते थे कि कामिनीबेन लीवर की एक दुर्लभ बीमारी से जूझ रही थीं और हम उसके चिकित्सा उपचार में सहायता कर रहे थे। दुर्भाग्य से, उसकी स्वास्थ्य स्थिति खराब हो गई और उसे जीवनरक्षक यकृत प्रत्यारोपण की आवश्यकता पड़ी। प्रत्यारोपण की लागत अधिकांश परिवारों की पहुंच से परे थी और श्री शंकरभाई प्रत्यारोपण का खर्च वहन नहीं कर सकते थे। हमने मदद के लिए मोहन फाउंडेशन की अनुदान टीम से संपर्क किया और हम उनकी वित्तीय सहायता के लिए बहुत आभारी हैं। कामिनीबेन को फिर से सपने देखने में मदद करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद”- श्रीमती शेरिना कॉन्ट्रैक्टर।